Saturday 4 August 2018

भंवरा



     
भंवरें सी ज़िन्दगी आज अपनी हुई है,
महनत के बगैर ज़िन्दगी खो रही है।
रानी की हुकूमत पर हम चल रहे है,
खुदके अस्तित्व को मिटा हम चले है।

महनत से जो शहद बन रहा है,
स्वाद उसका कोई और ही चख् रहा है।
दुःख को बयान कोई कर पा रहा है,
बनाने में शहद भंवरा फिर जूठ् रहा है।

काटकर एक बारी, मधुमक्खी सा मर पा रहा है,
बची हुई जान में अपनोंको काट रहा है।
ज़िंदगी अपनी भंवरा बेबसी में गुज़ार रहा है,
ज़िन्दगी का अपनी भंवरा  मातम मना रहा है।



         


 -संजना पंडित😇



SANJANA SANJAY PANDIT
B.E.BIOMEDICAL
MBA-HHM (2018-20)



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